वीडियो जानकारी: शास्त्र कौमुदी, 29.04.2022, ग्रेटर नॉएडा <br /><br />प्रसंग: <br />वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम्।<br />कथं स पुरुषः पार्थ कं घातयति हन्ति कम्।।<br />जो इस आत्मा को अविनाशी, नित्य, त्रिकाल में परिणाम-शून्य, जन्म-रहित, क्षयशून्य जानता है, <br />हे पार्थ, वह व्यक्ति किस प्रकार किसका वध कराता है? या किसका वध करता है?<br />श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय २, श्लोक २१)<br /><br />वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।<br />तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।<br />जिस प्रकार मनुष्य जीर्ण वस्त्र आदि का परित्याग कर दूसरे नए वस्त्र ग्रहण करता है <br />उसी प्रकार शरीरी जीव जीर्ण शरीर को छोड़कर दूसरे नए शरीर धारण करता है।<br />श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय २, श्लोक २२)<br /><br />नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।<br /> न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।<br />शस्त्र इस आत्मा को नहीं काट सकते, अग्नि इसको जला नहीं सकती, <br />जल गीला नहीं कर सकता, वायु सूखा नहीं सकती।<br />श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय २, श्लोक २३)<br /><br />अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च।<br /> नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः।।<br />यह आत्मा निरवयव होने के कारण काटा नहीं जा सकता, जलाया नहीं जा सकता, <br />गलाया नहीं जा सकता, सुखाया नहीं जा सकता। यह नित्य, सर्वव्यापी, स्थिर, निश्चल और सनातन है।<br />श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय २, श्लोक २४)<br /><br />अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते।<br /> तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि।।<br /> यह आत्मा वाणी से व्यक्त नहीं किया जा सकता, मन से इसका विचार <br />नहीं किया जा सकता और यह विकार रहित है। अतः अर्जुन शोक मत करो।<br />श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय २, श्लोक २५)<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते<br />~~~~~